महाभारत से सीखिए सफलता पाने के अमूल्य टिप्स

महाभारत (Mahabharat) की कथा हम सभी के लिए एक बहुत बड़ा संदेश है जीवन में निरंतर चल रहे संघर्ष को इस कथा में कदम-कदम पर दिखाया गया है।

हिंदुओं के दो सबसे पवित्र महाग्रंथ हैं – रामायण और महाभारत – इनकी कथाएं इंसान को कई तरह की सीख देती हैं, इनमें दी गई सीख आज के जीवन में भी बहुत ही सहायक हैं, महाभारत (Mahabharat) से आप कई ऐसी बात सिख सकते हैं, जो आपके जीवन को एक नई दिशा दे सकता है। इसलिए महाभारत की कुछ ऐसी बातें हम आपके साथ साझा कर रहे है जो आपके जीवन को नई गति दे सकता है।

महाभारत में बताया कि जीवन में संघर्ष कितना जरुरी है?

महाभारत (Mahabharat) की कथा हम सभी के लिए एक बहुत बड़ा संदेश है जीवन में निरंतर चल रहे संघर्ष को इस कथा में कदम-कदम पर दिखाया गया है। महाभारत (Mahabharat) की शुरुआत से लेकर अंत तक जीवन के संघर्ष को दर्शाया गया है। अम्बिका और अम्बालिका का संघर्ष हो या गंगा को पाने के लिए राजा शान्तनु का संघर्ष या भीष्म पितामह का संघर्ष इससे हमें बताता है जीवन में संघर्ष कितना जरुरी होता है। इसे हमें कभी हार नहीं मानना चाहिए।

किसी भी परिस्थिति में निर्णय लेने से पहले –

महाभारत (Mahabharat) में हमें बताया गया कि अगर हम अपने निर्णय लेने में खुद सक्षम नहीं हो पाते और उनके लिए हम दूसरों पर पूरी तरह से निर्भर रहते हैं या दूसरों की सलाह की प्रतीक्षा करते रहते हैं, जिससे हम अपने भविष्‍य या अपने साथ होने वाली घटना को खुद कभी भी नियंत्रित नहीं कर पाएंगे। दुसरो के ऊपर निर्भरता आपके अंदर एक डर पैदा करती है इसलिए जब भी कोई निर्णय ले सोच-समझकर खुद ही ले फिर वो चाहे गलत हो या सही हो।

डर को हमेशा के लिए करें दूर।

जिस इंसान के मन में डर रहेगा, वह कभी खुलकर जी नहीं पाएगा, डर हमेशा आपको नाश और अंत की ओर ही अग्रसर करता है, अक्‍सर डर में हम कुछ ऐसे कर जाते हैं, जिन पर हमे खुद बहुत पछतावा होता है। महाभारत (Mahabharat) में डर और उसके परिणामों को खुब दिखाया गया है, जैसे “धृतराष्ट्र का गद्दी हाथ से जाने का डर, दुर्योधन का पांडवों से हार जाने का डर, कर्ण का अपनों के ही विरुद्ध युद्ध का डर।” इससे यह सीख मिलती है कि जब तक आपके मन में डर है, आप सही निर्णय नहीं ले पाएंगे और यह आपके भविष्‍य को भी प्रभावित करेगा।

महाभारत (Mahabharat) से कुछ बातें जो हम सीख सकते है।

  • ‘एक वादा तोड़ना ठीक है यदि परिणाम सभी के लिए अच्छा होगा’, जैसे- शांतनु के अन्य पुत्रों की मृत्यु के बाद भीष्म विवाह कर सकते थे और राजा बन सकते थे, जिससे देश का भला होता।
  • ‘कोई भी व्यक्ति पूरी तरह से अच्छा नहीं है, कोई भी व्यक्ति पूरी तरह से बुरा नहीं है’ जैसे- महाभारत में हर चरित्र में अच्छे और बुरे दोनों लक्षण हैं। हर इंसान के अंदर ये दोनों बातें देखने को मिलती है।
  • ‘शब्दों का प्रयोग सावधानी से करें’, जैसे- शब्द एक बार कहने पर, उन्हें वापस नहीं लिया जा सकता। कर्ण ने द्रौपदी को वेश्या कहा। यह विनाश का कारण बना।
  • ‘सही समय पर सही फैसले लें’, जैसे- युधिष्ठिर अपने परिवार और राज्य पर दांव लगाने से पहले खेल को रोक सकते थे। युद्ध से बचने के लिए दुर्योधन कृष्ण से सौदा स्वीकार करने में विफल रहा।
  • ‘महिलाओं का सम्मान करें’, जैसे- रामायण और महाभारत दोनों में, प्रतिपक्षी लोगों की मृत्यु के अध्याय इसलिए लिखे गए क्योंकि वे महिलाओं के साथ बुरा व्यवहार करते थे।
  • ‘यदि आपको दुविधा है, तो वह चुनें जो आपका कर्तव्य है’, जैसे- अर्जुन दुविधा में पड़ गया कि उसे युद्ध करना चाहिए या नहीं। कृष्ण ने उसे युद्ध करने की सलाह दी क्योंकि वह उसका कर्तव्य था।
  • ‘युद्ध कभी अच्छा नहीं होता’, जैसे- यहां तक ​​कि विजेताओं को युद्ध जीतने के लिए बहुत कुछ खोना पड़ा। इसलिए कोई बात कह कर मनाई जा सकती है तो वहाँ पर युद्ध करना गलत होता है।
  • ‘कभी भी अहंकारी या घमंडी नहीं होना चाहिए’, जैसे- संपूर्ण महाभारत में, कृष्ण ने जो काम किया वह लोगों के अहंकार को कम कर रहा था। कृष्ण ने युधिष्ठिर, अर्जुन, भीम और भीष्म के अहंकार को भी नहीं छोड़ा।
  • ‘आधा ज्ञान खतरनाक है’, जैसे- अभिमन्यु और अश्वत्थामा ने एक ही गलती की और उन्हें इसके लिए भुगतान करना पड़ा। अगर उसको पूरा ज्ञान होता तो वो उस चक्रव्यूह में नहीं फंसता।

आंतरिक ग्रोथ में मदद करती है महाभारत की कथा

महाभारत अथवा धर्मशास्त्र हमेशा सत्य की शिक्षा देते हैं और असत्य पर सत्य की विजय को दर्शाते हैं, जैसे- सत्यमेव जयते। बुराई पर अच्छाई की और अधर्म पर धर्म की विजय हेतु प्रेरित करती है। भगवान कृष्ण ने अर्जुन को यही शिक्षा दी “माम अनुस्मर युध्य च” अर्थात मेरा स्मरण करते हुए युध्द करो।

हथियार से ज्यादा घातक होता है बोल-वचन

हम सभी जानते हैं कि किसी के द्वारा दिया गया बयान परिवार, समाज, राष्ट्र या धर्म को नुकसान पहुंचा सकता है। हमारे नेता, अभिनेता और तमाम तरह के सिंहासन पर विराजमान तथाकथित लोगों ने इस देश को अपने बोल-वचन से बहुत ज्यादा नुकसान पहुंचाया है।

महाभारत का युद्ध नहीं होता यदि कुछ लोग अपने वचनों पर संयम रखते। जैसे द्रौपदी ने एक बार महल के अंदर दुर्योधन एक जल से भरे कुंड को फर्शी समझकर उसमें गिर पड़े थे, उस पर हंसते हुए द्रौपदी ने कहा था- ‘अंधे का पुत्र भी अंधा’ और यह बात दुर्योधन को चुभ गई थी जिसका परिणाम द्रौपदी चीरहरण के रूप में हुआ था।