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यूनिसेफ के द्वारा जारी बच्चों के लिए जरूरी टीकाकरण

स्वास्थ्य विशेषज्ञ बच्चों के टीकाकरण (Vaccine) को लेकर विशेष जोर देते रहे हैं। टीकाकरण करा चुके बच्चे बीमारी से तेजी से और अधिक प्रभावी ढंग से मुकाबला कर सकते हैं।

navbharat

शिशु मृत्युदर लंबे समय से गंभीर वैश्विक चिंता का विषय रही है। बच्चों में कुपोषण के अलावा कई प्रकार की गंभीर और संक्रामक बीमारियों के चलते हर साल बड़ी संख्या में नवजात की मत्यु हो जाती है। हालांकि व्यापक टीकाकरण (Vaccine) अभियान के चलते इसमें पिछले एक दशक में बेहतर सुधार देखा गया है। वैक्सीन, बचपन की गंभीर-घातक बीमारियों से बचाने के साथ शरीर में प्राकृतिक सुरक्षा को उत्तेजित करके भविष्य में भी बच्चों को सुरक्षित रखने में मददगार होते हैं।

यही कारण है कि स्वास्थ्य विशेषज्ञ बच्चों के टीकाकरण (Vaccine) को लेकर विशेष जोर देते रहे हैं। टीकाकरण करा चुके बच्चे बीमारी से तेजी से और अधिक प्रभावी ढंग से मुकाबला कर सकते हैं।

भारत में बच्चों का टीकाकरण

भारत की बात करें तो यहां 80-90 के दशक में कई प्रकार की संक्रामक बीमारियों के चलते हर साल न सिर्फ हजारों बच्चों की मौत हो जाती थी, साथ ही पोलियो जैसे संक्रमण के चलते जीवन की गुणवत्ता भी प्रभावित हो जाती थी। हालांकि टीकाकरण को लेकर बढ़ी जागरूकता के चलते इनमें से ज्यादातर बीमारियों को अब काफी हद तक नियंत्रित कर लिया गया है।

यूनाइटेड नेशन्स इंटरनेशनल चिल्ड्रेन्स इमरजेंसी फंड (UNISEF) निरंतर टीकाकरण को बढ़ावा देने के लिए जागरूकता अभियान चला रहा है। आइए जानते हैं कि शिशुओं को कौन सी वैक्सीन जरूर लगवानी चाहिए? मात-पिता को इसको लेकर गंभीरता से ध्यान देने की आवश्यकता है।

बच्चों का टीकाकरण आवश्यक

कई गंभीर और संक्रामक बीमारियों से बचाव और इसके खिलाफ प्रतिरक्षा को बढ़ावा देने के लिए जन्म के प्रथम माह से ही टीकाकरण की शुरुआत हो जाती है। सरकारी अस्पतालों में ज्यादातर वैक्सीन मुफ्त उपलब्ध हैं। पोलियो जैसे संक्रामक रोग से बचाने के लिए घर-घर जाकर ड्रॉप्स पिलाया जाता है। जन्म के समय ही टीकाकरण पुस्तिका दी जाती है जिसमें नियमित अंतराल पर बच्चे को कौन सी वैक्सीन लगनी है इसका विवरण होता है।

खसरा से बचाव के लिए टीकाकरण

बच्चे में खसरा के कारण मृ्त्यु का जोखिम अधिक होता है, इससे बचाने के लिए एमएमआर वैक्सीन की दो डोज बच्चों को दी जाती है। यह वैक्सीन खसरा, मम्स और रूबेला जैसे घातक और जानलेवा बीमारियों के जोखिम से बचाने में मददगार है। इसका पहला टीका 12-15 माह और दूसरा 4-6 साल के बीच दी जाती है। सभी बच्चों को यह टीका जरूर लगवाना चाहिए।

हेपेटाइटिस-बी का टीका

हेपेटाइटिस बी, हेपेटाइटिस बी वायरस (एचबीवी) के कारण होने वाला जानलेवा संक्रमण है। इससे संक्रमण की स्थिति में लिवर की गंभीर बीमारियों का जोखिम होता है। डब्ल्यूएचओ के अनुसार शिशुओं को जन्म के बाद ही इसका टीका (Vaccine) लगाना चाहिए। कम से कम 4 सप्ताह के अंतराल पर हेपेटाइटिस बी के टीके की दूसरी-तीसरी खुराक दी जाती है। यह जीवनभर के लिए इस गंभीर संक्रमण से मृत्यु के जोखिम को कम करने में सहायक है।

ओरल पोलियो वैक्सीन

पोलियोमाइलाइटिस बच्चों में अपंगता का कारण बनने वाली बीमारी है। वैक्सीनेशन के व्यापक अभियान के परिणामस्वरूप भारत ने इस बीमारी पर विजय पा ली है। पोलियो से बचाव के लिए ओरल पोलियो वैक्सीन (ओपीवी) दी जाती है। पांच साल तक के बच्चों को दो बूंद वाली यह वैक्सीन गंभीर रोग के जोखिम से बचाने में मददगार है।

रोटावायरस वैक्सीन

रोटावायरस, दुनियाभर में शिशुओं और छोटे बच्चों में गंभीर डायरिया का सबसे आम कारण है। रोटावायरस वैक्सीन रोटावायरस संक्रमण से बचाती है और भविष्य में इसके गंभीर रोग के जोखिम को कम करने में लाभकारी है। बच्चों को 6, 10 और 14 सप्ताह में यह टीका दिया जाता है। भारत में वैक्सीनेशन को लेकर बढ़ाई गई जागरूकता के चलते इस संक्रमण पर काफी हद तक नियंत्रण पा लिया गया है।